Kalyanji Shah: कई बार जिंदगी में ऐसा होता है कि जो चीजें हम सोच कर नहीं करते, वही सबसे बड़ा बदलाव ले आती हैं। कुछ ऐसा ही किस्सा है मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर कल्याणजी का, जिनका नाम आज भी बॉलीवुड के सुनहरे दौर के साथ जुड़ा हुआ है। कल्याणजी का पूरा नाम था कल्याणजी वीरजी शाह।
उनका जन्म 30 जून 1928 को गुजरात के कच्छ जिले के कुंदरोडी गांव में हुआ था। वैसे तो वो एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखते थे, लेकिन किस्मत में तो मुंबई की चकाचौंध और बॉलीवुड की बड़ी-बड़ी फिल्मों में नाम कमाना लिखा था।
जब कल्याणजी थोड़े बड़े हुए, तो उनका परिवार गुजरात छोड़कर मुंबई आ गया। यहां उनके पिताजी वीरजी शाह ने मेहनत-मजदूरी करके एक छोटी सी किराने की दुकान शुरू की। सपनों का शहर मुंबई उनके लिए नया था, लेकिन कल्याणजी की जिंदगी में जो संगीत का बीज बचपन में बोया गया था, वो धीरे-धीरे एक बड़े पेड़ की तरह फैलने वाला था।

उधारी के बदले सीखा था संगीत
दुकान रोज की तरह चल रही थी। ग्राहक आते-जाते थे, कोई कैश में सामान लेता, कोई उधार में। लेकिन एक ग्राहक ऐसा भी था जो हर बार उधारी में सामान ले जाता, मगर पैसे देने का नाम नहीं लेता। काफी वक्त गुजर गया, उधारी बढ़ती गई, तो घरवालों ने उससे साफ-साफ बात की। लेकिन उसने जो ऑफर दिया, वो किसी ने सोचा भी नहीं था।
उसने कहा, “पैसे तो फिलहाल नहीं हैं, लेकिन अगर चाहो तो मैं तुम्हारे बेटों को संगीत सिखा सकता हूं।”अब सोचो, उस वक्त किसी को क्या पता था कि यही डील दो बच्चों की पूरी जिंदगी बदल देगी। यही बच्चे आगे चलकर देश-दुनिया में नाम कमाने वाले म्यूजिक डायरेक्टर बनने वाले थे। वो बच्चे थे कल्याणजी और उनके छोटे भाई आनंदजी।
जिस उधारी को पूरा करने के लिए वो शख्स उन्हें संगीत सिखाने लगा, वहीं से उनके जीवन में सुरों की असली शुरुआत हुई। धीरे-धीरे दोनों भाइयों का मन रियाज में लगने लगा। घंटों घंटों तक वो सुर-ताल में डूबे रहते, और देखते ही देखते संगीत उनके अंदर उतर गया। आज हम सब कल्याणजी-आनंदजी का नाम जानते हैं, उनकी धुनें गुनगुनाते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस सफर की शुरुआत एक उधारी से हुई थी।

हिन्दी सिनेमा में इस तहर से बनाई पहचान
कल्याणजी के म्यूजिक करियर की शुरुआत भी एक दिलचस्प कहानी है। उस जमाने में लोग बड़े-बड़े उस्तादों से पैसे देकर संगीत सीखते थे। लेकिन कल्याणजी को ये हुनर एक ‘उधारी’ की वजह से फ्री में मिल गया। कहते हैं, किसी उधारी के बदले गुरु ने उन्हें म्यूजिक सिखाया। बस वहीं से उनकी जिंदगी की असली शुरुआत हो गई।
समय के साथ उनका हुनर निखरता गया। कल्याणजी ने अपने छोटे भाई आनंदजी के साथ मिलकर ‘कल्याणजी वीरजी एंड पार्टी’ के नाम से एक ऑर्केस्ट्रा शुरू किया। वो अलग-अलग शहरों में जाकर लाइव परफॉर्मेंस देते थे, जिससे धीरे-धीरे उनकी पहचान बनने लगी।
कल्याणजी का पहला फिल्मी काम 1959 में आया, जब फिल्म ‘सम्राट चंद्रगुप्त’ रिलीज हुई। उस वक्त आनंदजी ने ऑफिशियली उनके साथ काम शुरू नहीं किया था, लेकिन वो हर कदम पर उनके साथ थे। बाद में उसी साल आनंदजी ने भी ऑफिशियली म्यूजिक डायरेक्शन में कदम रखा। दोनों ने मिलकर ‘सट्टा बाजार’ और ‘मदारी’ जैसी फिल्मों के लिए संगीत दिया।
1960 में रिलीज हुई ‘छलिया’ उनकी पहली बड़ी हिट मानी जाती है। उसके बाद 1965 में ‘हिमालय की गोद में’ और ‘जब जब फूल खिले’ जैसी फिल्मों ने तो उनकी जोड़ी को बॉलीवुड के टॉप म्यूजिक डायरेक्टर्स की लिस्ट में शामिल कर दिया।
आज भी कल्याणजी-आनंदजी के बनाए गाने सुनकर लोग पुराने दौर की यादों में खो जाते हैं। उनकी मेहनत, लगन और टैलेंट ने उन्हें हिंदी सिनेमा की एक ऐसी पहचान दी, जो कभी मिट नहीं सकती।

250 से ज्यादा फिल्मों में दिया संगीत
बॉलीवुड के मशहूर संगीतकारों की बात हो और कल्याणजी-आनंदजी का नाम न आए, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। इस जोड़ी ने अपने करियर में 250 से ज्यादा फिल्मों को अपनी धुनों से सजाया। इनमें से 17 फिल्में गोल्डन जुबली और 39 सिल्वर जुबली तक पहुंचीं, जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है।
कल्याणजी-आनंदजी ने उस दौर के दिग्गज गायकों के साथ काम किया, जिनकी आवाजें आज भी लोगों के दिलों में बसती हैं। मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, आशा भोसले, मन्ना डे, मुकेश और महेंद्र कपूर जैसे नाम उनके हिट गानों का हिस्सा रहे।
साल 1974 में आई फिल्म ‘कोरा कागज’ का गाना ‘मेरा जीवन कोरा कागज’ तो हर किसी की जुबान पर चढ़ गया था।
इसी गाने के लिए उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक’ का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला, जो उनके करियर का बड़ा मुकाम बना।
कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी ने लता मंगेशकर के लिए कुल 326 गाने तैयार किए। इनमें से 24 गाने कल्याणजी ने अपने शुरुआती दौर में ‘कल्याणजी वीरजी शाह’ नाम से दिए थे। बाकी सारे गाने दोनों भाइयों की जोड़ी ने मिलकर बनाए, जिन्हें आज भी लोग पसंद करते हैं।
मन्ना डे की आवाज में सजी कव्वाली ‘यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी’ आज भी सुनते ही दिल को छू जाती है। ये गाना सिर्फ एक धुन नहीं, बल्कि दोस्ती की असली भावनाओं को बयां करता है। 24 अगस्त 2000 को कल्याणजी वीरजी शाह ने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी बनाई धुनें आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
उनका संगीत ऐसा है जो कभी-कभी कहीं से भी सुनाई देता है और दिल के पुराने जख्मों को फिर से ताजा कर देता है। यही तो असली जादू है उनके अमर तरानों का।