International Day of Zero Tolerance for Female Genital Mutilation 2025: 6 फरवरी का दिन दुनियाभर की महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन दुनियाभर में ‘महिला जननांग विकृति (FGM) के खिलाफ शून्य सहनशीलता का अंतरराष्ट्रीय दिवस’ (International Day of Zero Tolerance for Female Genital Mutilation 2025) मनाया जाता है। इसका उद्देश्य महिलाओं के साथ होने वाली इस अमानवीय प्रथा को खत्म करना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है।
आज भी दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं को एक अमानवीय और खतरनाक प्रथा का शिकार बनाया जाता है। यह प्रथा है महिला जननांग विकृति (Female Genital Mutilation – FGM), जो न सिर्फ उनके शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि मानसिक रूप से भी गहरा प्रभाव छोड़ती है। ऐसे में अगर हम सब मिलकर आवाज उठाएं, तो इस कुप्रथा (International Day of Zero Tolerance for Female Genital Mutilation 2025) को खत्म किया जा सकता है और महिलाओं को उनका हक दिलाया जा सकता है। तो आइए जानते हैं इस खास दिन के इतिहास, महत्व और थीम के बारे में –

History Of International Day of Zero Tolerance for Female Genital Mutilation
आपको बात दें कि ‘महिला जननांग विकृति (FGM) के खिलाफ शून्य सहनशीलता का अंतरराष्ट्रीय दिवस’ (International Day of Zero Tolerance for Female Genital Mutilation 2025) की शुरुआत नाइजीरिया की पूर्व प्रथम महिला स्टेला ओबासनजो (Stella Obasanjo) ने की थी। उन्होंने 6 फरवरी 2003 को इस दिवस को मनाने की घोषणा की। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी इसे आधिकारिक मान्यता दी।
हालाकि इसे रोकने के लिए साल 2007 में UNFPA और UNICEF ने इस प्रथा के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाया, लेकिन इसके बाद एक बार फिर साल 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 6 फरवरी को आधिकारिक तौर पर ‘महिला जननांग विकृति के खिलाफ शून्य सहनशीलता का अंतरराष्ट्रीय दिवस’ मनाने की घोषणा कर दी।

Importance Of International Day of Zero Tolerance for Female Genital Mutilation
हमारे समाज में महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार मिलने चाहिए। लेकिन सदियों से महिलाओं पर कई तरह की अन्यायपूर्ण प्रथाएं थोपी गई हैं, जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। इनमें से एक खतरनाक प्रथा महिला जननांग विकृति (FGM) भी है, जो अमानवीय और दर्दनाक होती है। यह प्रथा महिलाओं के स्वास्थ्य और साथ हीं मानसिक स्थिति पर गंभीर असर डालती है और इसे खत्म करना बहुत जरूरी है।
इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है और साथ हीं यह बताना भी है कि यह प्रथा महिलाओं के लिए कितनी नुकसानदायक है। इसके अलावा साल 2030 तक इस खतरनाक प्रथा को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को इससे बचाया जा सके। ऐसे में हम साथ मिलकर इस कुप्रथा के खिलाफ एक जंग छेड़ सकते हैं और कई महिलाओं को इस कुप्रथा से बचा सकते हैं।
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What Should Be Done?
अगर आप भी इस कुप्रथा के खिलाफ अपना योगदान देना चाहते हैं, तो हमें इस मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा चर्चा करनी चाहिए ताकि लोग इसके दुष्प्रभावों को समझें और जागरूक हों। साथ हीं महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों की रक्षा के लिए हमें संगठनों और सरकारों का समर्थन करना चाहिए।
इसके अलावा हमें अपने आसपास के लोगों को भी इस विषय में जानकारी देकर जागरुक करना जरूरी है, ताकि इस कुप्रथा को जड़ से मिटाया जा सके। याद रहें एकता की ताकत बहुत बड़ी होती है और एक होकर हम इस कुप्रथा को पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं।