First Blockbuster Movie: आजकल अगर कोई फिल्म 100 करोड़ कमा ले। तो उसे ब्लॉकबस्टर का टैग मिल जाता है। लोग कहते हैं। “वाह! 100 करोड़ कमा ली कमाल कर दिया” लेकिन सोचिए उस दौर में जब भारत आजाद भी नहीं हुआ था। उस वक्त कोई फिल्म 1 करोड़ कमा ले। तो क्या सीन रहा होगा। ये बात 1943 की है। जब फिल्म ‘किस्मत’ रिलीज हुई थी, ये वो टाइम था जब देश में आजादी की लड़ाई जोरों पर थी।
लोगों के दिलों में देशभक्ति का जुनून था। इसी बीच आई थी ‘किस्मत’, जिसने कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और भारत की पहली 1 करोड़ कमाने वाली फिल्म बन गई। इस फिल्म की इतनी जबरदस्त सफलता का एक बड़ा कारण था इसका संगीत। अनिल विश्वास ने ऐसा संगीत दिया, जो सीधे लोगों के दिल में उतर गया। ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है।’ जैसा देशभक्ति से भरा गाना सुनते ही लोगों में एक नई ऊर्जा आ जाती थी। वहीं ‘धीरे धीरे आ रे बादल’ जैसी रोमांटिक धुन हर किसी के दिल को छू जाती थी।
अनिल विश्वास का जन्म 7 जुलाई 1914 को बरीसाल में हुआ था। जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है, बचपन से ही उन्हें संगीत में गजब की रुचि थी। लेकिन उनकी जिंदगी सिर्फ सुरों तक ही सीमित नहीं रही। किशोर उम्र में ही वो आजादी की लड़ाई से जुड़ गए और इसी वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
जेल से निकलने के बाद उन्होंने पूरी तरह से खुद को संगीत के हवाले कर दिया। उनकी मेहनत और टैलेंट का नतीजा था कि ‘किस्मत’ जैसी फिल्म में उनका संगीत इतिहास बना गया। आज भी पुराने गानों के शौकीन लोग अनिल विश्वास का नाम बड़े गर्व से लेते हैं।
‘किस्मत’ सिर्फ एक फिल्म नहीं थी। वो उस दौर के समाज का आईना थी। उस फिल्म ने न सिर्फ कमाई में इतिहास रचा। बल्कि लोगों के दिलों में देशभक्ति और रोमांस दोनों जगा दिया। सोचिए। जब टीवी या इंटरनेट का जमाना नहीं था। तब भी एक फिल्म इतनी पॉपुलर हो गई थी कि हर कोई उसके गाने गुनगुना रहा था।

मुंबई आकर शुरू हुआ फिल्मी सफर
अनिल विश्वास का फिल्मी सफर काफी दिलचस्प रहा। वो काम की तलाश में मुंबई पहुंचे थे और यहां आते ही थिएटर से अपने करियर की शुरुआत की। धीरे-धीरे उनका रुझान फिल्मों की तरफ बढ़ा और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। शुरुआत में उन्होंने कलकत्ता की कुछ फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया, लेकिन असली पहचान उन्हें ‘बॉम्बे टॉकीज’ से मिली।
इसी के बाद उनका नाम इंडस्ट्री में फैलने लगा। अनिल विश्वास सिर्फ अच्छे गाने बनाने के लिए नहीं जाने जाते थे। बल्कि उन्होंने फिल्मी संगीत की पूरी दिशा ही बदल दी। फिल्म ‘किस्मत’ के बाद तो उनकी गिनती हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े संगीतकारों में होने लगी, खास बात ये रही कि उन्होंने कई नए गायकों को मौका दिया।
जो आगे चलकर बड़े स्टार बन गए। मुकेश। तलत महमूद। लता मंगेशकर मीना कपूर और सुधा मल्होत्रा जैसे सिंगर्स को पहला ब्रेक देने का श्रेय भी अनिल विश्वास को ही जाता है। उन्होंने फिल्मों में गजल। ठुमरी। दादरा। कजरी और चैती जैसे उपशास्त्रीय संगीत को भी बड़ी खूबसूरती से पेश किया। जिससे ये शैलियां आम दर्शकों के बीच भी लोकप्रिय हो गईं।
हर जगह सुने जाते थे उनके गाने
1940 और 50 के दशक की बात करें तो उस दौर में अगर किसी का संगीत सबसे अलग और दिल छू लेने वाला था। तो वो थे अनिल विश्वास। यानी अनिल दा। उस वक्त ज्यादातर गाने सीधे-सादे और सिंपल मेलोडी वाले होते थे। लेकिन अनिल दा ने म्यूजिक को एक नई गहराई और ताजगी दी।
उनकी धुनों में कुछ ऐसा जादू था कि आज भी जब उनके गाने सुनो। तो ऐसा लगता है जैसे कोई नया गाना पहली बार सुन रहे हो। ‘अनोखा प्यार’, ‘आरजू’, ‘तराना’, ‘आकाश’, ‘हमदर्द’ जैसी फिल्मों में उनका संगीत लाजवाब था और हर एक गाना सुनने वालों के दिल में बस जाता था।
सबसे कमाल की बात ये थी कि उन्होंने एक बार रागमाला बनाई, जिसमें चार अलग-अलग रागों को एक ही गाने में इस खूबसूरती से पिरोया कि सुनने वाला हैरान रह जाए। उस जमाने में ऐसा एक्सपेरिमेंट किसी ने नहीं किया था। यही वजह है कि अनिल दा को म्यूजिक की दुनिया में हमेशा याद किया जाता है।

ऐसे शुरू हुआ अनिल विश्वास के संगीत का सफर
संगीत की दुनिया में एक समय का बड़ा नाम रहे अनिल विश्वास ने अपनी आखिरी फिल्म बतौर संगीतकार 1965 में दी थी। जिसका नाम था ‘छोटी छोटी बातें, इस फिल्म के गाने जैसे ‘जिंदगी ख्वाब है,’ और ‘कुछ और जमाना कहता है।’ आज भी लोगों की यादों में बसे हुए हैं। इन गानों में अनिल विश्वास की गहरी सोच और उनकी मेलोडी का अलग ही स्तर दिखता है। हालांकि, फिल्म की कहानी दर्शकों के दिल में ज्यादा जगह नहीं बना पाई, लेकिन इसका संगीत लोगों के बीच हमेशा के लिए अमर हो गया। यही उनकी खासियत थी कि चाहे फिल्म चले या न चले।
उनका संगीत लोगों के दिलों में जरूर बस जाता था। फिल्मों से दूरी बनाने के बाद अनिल विश्वास ने दिल्ली का रुख किया और संगीत शिक्षा में अपनी जिंदगी लगा दी उन्होंने आकाशवाणी (All India Radio) और संगीत नाटक अकादमी जैसे बड़े संस्थानों के साथ मिलकर युवा टैलेंट को आगे बढ़ाने का काम किया।
अनिल विश्वास का मानना था कि संगीत सिर्फ मनोरंजन नहीं। बल्कि एक गहरी साधना है जिसे सही तरीके से अगली पीढ़ी तक पहुंचाना जरूरी है। उनकी ये यात्रा बताती है कि सच्चे कलाकार का सफर सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं रहता। वो अपनी कला को समाज और नए कलाकारों में भी बांटता है।