Smita Patil: स्मिता पाटिल का नाम सुनते ही एक सशक्त और बेबाक अदाकारा की छवि आंखों के सामने आ जाती है। उन्होंने ना सिर्फ दमदार एक्टिंग की, बल्कि कई बार ऐसे मुद्दों पर भी खुलकर बात की, जिन पर बाकी एक्टर्स अक्सर चुप्पी साध लेते थे।
इंटीमेट सीन्स को लेकर आज भी खूब चर्चा होती है। कोई इन्हें जरूरी मानता है तो कोई सिर्फ दर्शकों को लुभाने का तरीका। लेकिन जब फिल्मों में इन सीन्स को लेकर कोई ठोस स्टैंड लेना आसान नहीं था, तब स्मिता पाटिल ने खुलकर अपनी बात रखी थी।
वो उन चुनिंदा एक्ट्रेसेज में थीं जो सिर्फ ग्लैमर तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि फिल्मों के जरिए समाज से जुड़े गंभीर मुद्दों को भी उठाया। चाहे ‘भूमिका’ हो, ‘चक्र’ या ‘मिर्च मसाला’ हर फिल्म में उन्होंने अपनी एक्टिंग से साबित किया कि वो सिर्फ एक अदाकारा नहीं, बल्कि एक सोच हैं।

इंटीमेट सीन्स पर दिया था बड़ा बयान
बता दें कि फिल्म ‘चक्र’ में उनका एक बाथिंग सीन काफी चर्चा में रहा था। इस सीन को फिल्म के पोस्टर में भी prominently दिखाया गया, जिससे लोगों की नजरें और ज्यादा इस पर टिक गईं। उस दौर में ऐसा सीन करना वैसे भी एक बड़ा कदम माना जाता था, लेकिन स्मिता पाटिल ने इसे सिर्फ एक ‘सीन’ नहीं माना, बल्कि इससे जुड़ी सोच और नजरिए पर सवाल उठाए।
उन्होंने साफ-साफ कहा था कि अगर कोई इंटीमेट या बाथिंग सीन कहानी का हिस्सा है, उसका कोई cinematic मकसद है, तो वो ठीक है। लेकिन अगर इसे सिर्फ फिल्म बेचने या पोस्टर पर आकर्षण के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो ये गलत है। स्मिता ने अपने शब्दों से ही नहीं, बल्कि अपने पूरे करियर से ये साबित किया कि एक औरत की मर्यादा क्या होती है और किस तरह वो खुद अपने रोल्स को define कर सकती है।

स्मिता पाटिल के बयान ने मचा दिया था मचा हड़कंप
फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं को कैसे सिर्फ ग्लैमर और शो-ऑफ का हिस्सा बना दिया जाता है। स्मिता पाटिल जैसी दमदार और सशक्त अभिनेत्री ने इस दोहरे मापदंड के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी। उन्होंने एक इंटरव्यू में साफ कहा था कि, “हीरो को आप नंगा दिखा भी दो, तो उससे कोई खास फायदा नहीं होने वाला। लेकिन अगर औरत को नंगा दिखा दिया जाए, तो उन्हें लगता है कि सौ और लोग फिल्म देखने आ जाएंगे।”
ये लाइन सिर्फ एक बयान नहीं थी, बल्कि उस सोच पर करारा तमाचा था जो सिनेमा में महिलाओं को सिर्फ एक visual object समझती है। स्मिता पाटिल ने अपने करियर में हमेशा मजबूत किरदारों को चुना, जो समाज की सच्चाई को दर्शाते थे न कि सिर्फ ग्लैमर या एक्सपोजर पर टिका हुआ किरदार।

फिल्ममेकर्स के व्यवहार पर बोलीं थी स्मिता पाटिल
स्मिता पाटिल ने जब दूरदर्शन पर अपनी बात रखी थी, तो उनका लहजा साफ और बेबाक था। उन्होंने सीधे-सीधे कहा था कि फिल्ममेकर्स का ये तरीका बिल्कुल गलत है, जहां वो दर्शकों को लुभाने के लिए पोस्टर्स में आधे नंगे शरीर दिखाते हैं। उनके मुताबिक, लोगों पर जबरदस्ती ये सोच थोपी जा रही है कि अगर फिल्म में ग्लैमर है, तो वो देखने लायक है।
लेकिन स्मिता ने इस सोच को सिरे से नकारा। उन्होंने कहा था कि अगर किसी फिल्म में असली सच्चाई और दमदार कहानी है, तो वो खुद-ब-खुद लोगों तक पहुंचेगी। सिर्फ पोस्टर या हॉट सीन दिखाकर फिल्म को हिट नहीं बनाया जा सकता। बता दें कि महज 31 साल की उम्र में, साल 1986 में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। ये उस वक्त की बात है जब वो अपने बेटे प्रतीक बब्बर को जन्म दे रही थीं।
प्रेग्नेंसी के दौरान उन्हें कई मेडिकल कॉम्प्लिकेशन्स का सामना करना पड़ा। प्रतीक की डिलिवरी के बाद उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। डॉक्टर्स ने काफी कोशिशें कीं, लेकिन उनकी हालत लगातार नाजुक होती गई और आखिरकार वो बच नहीं सकीं।