Jagdeep: इस तरह मिला था जगदीप को सूरमा भोपाली खिताब, जानिए कैसे बनें स्टार

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Jagdeep: जगदीप का नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। हिंदी सिनेमा के ब्लैक एंड वाइट दौर से लेकर रंगीन पर्दे तक, उन्होंने अपनी कॉमिक टाइमिंग और दमदार अदाकारी से जो पहचान बनाई, वो हर किसी के बस की बात नहीं थी। उनका हर रोल कुछ अलग और यादगार होता था, लेकिन अगर बात हो 1975 में आई फिल्म ‘शोले’ की, तो ‘सूरमा भोपाली’ का जिक्र जरूर आता है।

ये किरदार इतना फेमस हुआ कि लोग असल जिंदगी में भी उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे। ‘शोले’ वैसे तो जय, वीरू, गब्बर जैसे किरदारों के लिए जानी जाती है, लेकिन सूरमा भोपाली का छोटा सा रोल भी दर्शकों के दिलों में ऐसी जगह बना गया कि वो फिल्म का एक खास हिस्सा बन गया।

उनकी बोली, अंदाज और भोलेपन में जो कॉमिक टच था, वो इतना नेचुरल लगता था कि हंसी रोक पाना मुश्किल हो जाता था।
जगदीप के लिए फिल्मों में खास स्क्रिप्ट लिखी जाती थी, क्योंकि उन्हें सिर्फ कॉमेडियन नहीं बल्कि एक परफॉर्मर माना जाता था। उन्होंने कभी ओवरएक्टिंग का सहारा नहीं लिया, बस अपने अंदाज से सीन में जान डाल दी।

ऐसे मिला था सूरमा भोपाली का खिताब

जब भी कोई शोले की बात करता है, तो जय-वीरू के साथ एक और नाम याद आता है सूरमा भोपाली, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये मजेदार किरदार फिल्म की शुरुआती स्क्रिप्ट में था ही नहीं। असल में, शोले के राइटर्स सलीम-जावेद ने जब फिल्म को थोड़ा हल्का-फुल्का बनाना चाहा, तो उन्होंने इस कैरेक्टर को जोड़ा।

उन्हें एक ऐसे इंसान की जरूरत थी जो भारी-भरकम डायलॉग्स और एक्शन के बीच हंसी का तड़का लगाए. और तब आया सूरमा भोपाली का एंट्री सीन, जगदीप ने इस रोल को कुछ इस अंदाज में निभाया कि लोग उन्हें असली सूरमा भोपाली ही मानने लगे उनका लहजा, उनका बोलने का अंदाज, और वो भोपाल की मिठास भरी हिंदी सब कुछ इतना फनी था कि लोगों के दिलों में बस गया।

सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये सीन फिल्म का कोई बड़ा हिस्सा नहीं था, लेकिन फिर भी लोगों पर इतना असर हुआ कि सालों तक जगदीप को इसी नाम से पुकारा गया। उन्होंने ये साबित कर दिया कि छोटा रोल भी अगर दमदार हो, तो वो अमर बन सकता है। इस रोल की पॉपुलैरिटी इतनी बढ़ी कि बाद में ‘सूरमा भोपाली’ नाम से एक पूरी फिल्म तक बन गई, जिसमें जगदीप ही लीड रोल में थे।

जगदीप ने तय किया था काफी लंबा सफर

जब भी ‘सूरमा भोपाली’ का नाम आता है, चेहरे पर अपने आप मुस्कान आ जाती है। लेकिन इस नाम के पीछे जो शख्स था जगदीप उसकी जिंदगी का सफर इतना आसान नहीं था। जो इंसान अपनी कॉमिक टाइमिंग और दिल जीत लेने वाले एक्सप्रेशन्स से हर किसी का चहेता बना, उसने बचपन में ऐसे दिन भी देखे थे जहां दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था।
जगदीप का जन्म ऐसे वक्त में हुआ जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था।

मां मुंबई के एक अनाथालय में रोटियां बनाकर जैसे-तैसे घर चला रही थीं। छोटी उम्र में ही जगदीप ने ये देख लिया था कि जिंदगी सिर्फ खेल-कूद का नाम नहीं होती। मां का हाथ बंटाने के लिए उन्होंने महज 6 साल की उम्र में काम करना शुरू कर दिया।

वो मुंबई की सड़कों पर कंघी, साबुन और खिलौने बेचा करते थे। इसी दौरान उनकी किस्मत ने करवट ली। एक दिन फिल्ममेकर बी.आर. चोपड़ा की नजर उन पर पड़ी। उस वक्त चोपड़ा साहब अपनी फिल्म ‘अफसाना’ के लिए एक चाइल्ड आर्टिस्ट ढूंढ रहे थे।

जगदीप को रोल मिल गया, और पहली बार उन्हें ताली बजाने के तीन रुपए मिले जो उस वक्त सड़क पर सामान बेचकर दिनभर में मिलते डेढ़ रुपए से कहीं ज्यादा थे।

यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ। इसके बाद ‘दो बीघा जमीन’, ‘मुन्ना’, ‘हम पंछी एक डाल के’, और ‘आर पार’ जैसी फिल्मों में उन्होंने छोटे लेकिन दमदार रोल किए। ‘हम पंछी एक डाल के’ में उनके अभिनय से इतने लोग प्रभावित हुए कि खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सम्मानित किया।

इसके बाद AVM प्रोडक्शन ने उन्हें ‘भाभी’, ‘बरखा’ और ‘बिंदिया’ जैसी फिल्मों में बतौर हीरो लॉन्च किया। ‘भाभी’ का गाना ‘चल उड़ जा रे पंछी’ आज भी लोगों की जुबान पर है, जिसमें वो नंदा के साथ नजर आए थे। हालांकि हीरो बनने के बावजूद, असली पहचान उन्हें कॉमेडी से मिली।

शम्मी कपूर की फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ में उनका कॉमिक रोल इतना हिट हुआ कि उन्होंने हास्य अभिनेता के तौर पर अपनी अलग जगह बना ली, लेकिन असली मुकाम उन्हें मिला शोले के ‘सूरमा भोपाली’ से। इस रोल ने उन्हें वो पहचान दी, जिसे लोग आज भी याद करते हैं।

60 और 70 के दश्क में कॉमेडी किंग माने जाते थे जगदीप

60 और 70 के दशक की बात हो और कॉमेडी का जिक्र न हो, तो जगदीप का नाम जरूर आएगा। उस दौर में अगर किसी की परफेक्ट कॉमिक टाइमिंग पर दर्शक दिल खोलकर हंसते थे, तो वो थे जगदीप। उन्होंने हर सीन में ऐसा जान डाल दिया कि लोग उन्हें सिर्फ एक किरदार नहीं, बल्कि कॉमेडी का पर्याय मानने लगे।

फिल्म ‘तीन बहुरानियां’, ‘खिलौना’, ‘जीने की राह’, ‘गोरा और काला’, ‘इंसानियत’, और ‘चला मुरारी हीरो बनने’ जैसी फिल्मों में उन्होंने ऐसी कॉमिक परफॉर्मेंस दी कि लोग बार-बार इन फिल्मों को देखने पहुंचे। वो सिर्फ हंसी के लिए नहीं जाने जाते थे, बल्कि एक्टिंग में उनका रेंज भी कमाल का था।

जगदीप ने कई फिल्मों में विलेन का रोल भी किया, जो दर्शकों को काफी चौंकाने वाला लगा। ‘शिकवा’, ‘धोबी डॉक्टर’, और ‘मंदिर-मस्जिद’ जैसी फिल्मों में उनका सीरियस और नेगेटिव किरदार भी उतना ही दमदार था जितना उनका हास्य अभिनय।
दिलचस्प बात ये है कि वो रामसे ब्रदर्स की हॉरर फिल्मों का भी अहम हिस्सा रहे।

‘पुराना मंदिर’ और ‘3डी सामरी’ जैसी डरावनी फिल्मों में उनका अंदाज लोगों को खूब पसंद आया। एक तरफ जहां फिल्म डराती थी, वहीं जगदीप अपने अंदाज से दर्शकों को थोड़ा रिलैक्स भी कर देते थे। करीब 70 सालों तक फिल्मों से जुड़े रहने के बाद उन्होंने 2017 में आखिरी बार फिल्म ‘मस्ती नहीं सस्ती’ में काम किया।

इस फिल्म में उनके साथ जॉनी लीवर, कादर खान, शक्ति कपूर और रवि किशन जैसे बड़े कलाकार थे। जगदीप का सफर सिर्फ कॉमेडी तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने हर जॉनर में खुद को साबित किया और इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक यादगार किरदार दिए।

8 जुलाई 2020 को हुआ था निधन

8 जुलाई 2020 को हिंदी सिनेमा ने एक ऐसा चेहरा खो दिया जिसे लोग सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि अपने परिवार का हिस्सा मानते थे। सूरमा भोपाली के नाम से मशहूर जगदीप ने 81 साल की उम्र में मुंबई में अंतिम सांस ली। जगदीप का असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था।

उनका जन्म 29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से कस्बे दतिया में हुआ था। उनका परिवार पढ़ा-लिखा और प्रतिष्ठित था पिताजी एक बैरिस्टर थे। लेकिन जब उनका निधन हुआ, तो परिवार की आर्थिक स्थिति अचानक बदल गई। घर चलाने की जिम्मेदारी छोटे से इश्तियाक पर आ गई और उन्होंने बहुत कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया।

इसी संघर्ष भरे बचपन ने उन्हें वह ताकत दी जो बाद में बॉलीवुड की चकाचौंध में भी उन्हें जमीन से जोड़े रखी। ‘शोले’ फिल्म में उनका किरदार सूरमा भोपाली इतना पॉपुलर हुआ कि लोग असली नाम भूलकर उन्हें इसी नाम से जानने लगे। उनकी कॉमिक टाइमिंग, अनोखा अंदाज और मासूमियत भरी एक्टिंग ने उन्हें हर उम्र के दर्शकों का फेवरेट बना दिया।

जगदीप सिर्फ एक एक्टर नहीं थे, वो एक दौर थे। वो दौर जो अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी फिल्में, उनके डायलॉग्स और उनका अंदाज हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगा।

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