Bollywood Music History: ओ.पी. नैयर का नाम आते ही पुराने फिल्मों के वो मस्त-मिजाज गाने याद आ जाते हैं, जिनमें ताल, धुन और जोश का एक अलग ही तड़का होता था। दिलचस्प बात ये है कि ओ.पी. नैयर को कभी संगीत की विधिवत पढ़ाई नहीं मिली थी। उन्होंने न कोई म्यूजिक स्कूल जॉइन किया, न ही किसी गुरू के पास बाकायदा बैठकर रियाज़ किया। मगर उनकी धुनें सुनकर कोई भी मान नहीं सकता कि ये इंसान बिना क्लासिकल ट्रेनिंग के इतना बड़ा म्यूजिक डायरेक्टर बन सकता है।
कहते हैं कि उनके गानों में एक खास किस्म का ‘नक्खरा’ और ‘अदाएं’ होती थीं, जो सीधे दिल को छू जाती थीं। यही वजह थी कि ओ.पी. नैयर अपने दौर में सबसे ज्यादा फीस लेने वाले संगीतकारों में शामिल हो गए थे। उनके गानों में जो ‘सिग्नेचर स्टाइल’ था, वो किसी और के पास नहीं था। खासतौर पर उनके कंपोज किए हुए गानों में जो पंजाबी बीट्स और घोड़े की टापों जैसी धुनें सुनने को मिलती थीं, वो सुनने वाले को थिरकने पर मजबूर कर देती थीं।

17 साल से भी कम उम्र में शुरू किया था अपने संगीत का सफर
ओ.पी. नैयर का जन्म 16 जनवरी 1926 को अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ था। बचपन से ही उनका झुकाव संगीत की तरफ था। मगर परिवार वालों को लगता था कि अगर वो संगीत में उलझ गए तो पढ़ाई-लिखाई का क्या होगा? लेकिन कहते हैं ना, दिल जहां अटक जाए, वहां से हटाना मुश्किल होता है। नैयर साहब का दिल भी पूरी तरह संगीत में रम चुका था।
सिर्फ 17 साल की उम्र में उन्होंने HMV के लिए ‘कबीर वाणी’ कंपोज की। ये उतनी पसंद नहीं की गई, मगर इससे उनका हौसला नहीं टूटा। इसके बाद उन्होंने ‘प्रीतम आन मिलो’ नाम से एक प्राइवेट एल्बम तैयार किया, जिसमें मशहूर गायक सी.एच. आत्मा ने अपनी आवाज दी, इस एल्बम ने नैयर को इंडस्ट्री में पहली बार पहचान दिलाई।
ऐसा लग रहा था कि अब उनका सपना सच होने ही वाला है, लेकिन तभी देश का बंटवारा हो गया। लाहौर छोड़कर उन्हें पटियाला आना पड़ा। यहां उन्होंने संगीत सिखाने का काम शुरू किया, लेकिन दिल तो फिल्मों में संगीत देने का था। इसी जुनून में वो मुंबई (तब का बॉम्बे) पहुंच गए। यहां उन्होंने खूब संघर्ष किया, सही लोगों से मिले और आखिरकार उन्हें फिल्मों में संगीत देने का मौका मिला।

इस कारण से नहीं किया लता मंगेशकर संग काम
1952 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘आसमान’ ओ. पी. नैयर के करियर के लिए एक बड़ी शुरुआत साबित हुई, लेकिन इसी फिल्म ने उनके और लता मंगेशकर के रिश्तों में ऐसी दरार डाल दी जो कभी भर नहीं सकी। दोनों ने इसके बाद कभी साथ काम नहीं किया।
उस वक्त लता मंगेशकर का सितारा बुलंदियों पर था। उन्होंने ‘अनारकली’, ‘नागिन’ और ‘बैजू बावरा’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के गानों से अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। नैयर ने भी अपनी फिल्म ‘आसमान’ के लिए लता को गाने का ऑफर दिया, जिस पर लता तैयार हो गईं। लेकिन जब रिकॉर्डिंग का दिन आया, तो लता तय वक्त पर स्टूडियो नहीं पहुंचीं।
बाद में उन्होंने नैयर को फोन करके बताया कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, नाक में तकलीफ थी और डॉक्टर ने आराम करने को कहा था, लेकिन नैयर का रवैया सख्त था। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि जो इंसान वक्त की कद्र नहीं करता, उसकी मेरे काम में कोई जगह नहीं है। लता ने उन्हें समझाने की कोशिश की, मगर नैयर नहीं माने।
इस बहस का नतीजा ये निकला कि दोनों के रास्ते अलग हो गए। लता ने भी गुस्से में कह दिया कि जो इंसान दूसरों की तकलीफ नहीं समझ सकता, उसके लिए मैं नहीं गा सकती।
फिर उस गाने को गायिका राजकुमारी ने गाया वो गाना था, ‘मोरी निंदिया चुराए गयो’, जो उस वक्त काफी पसंद भी किया गया। इस घटना के बाद दोनों ने कभी साथ काम नहीं किया, और ये किस्सा फिल्म इंडस्ट्री की सबसे चर्चित कहानियों में शामिल हो गया।

अपनी शर्तों पर काम करते थे ओ.पी. नैयर
ओ.पी. नैयर का नाम आते ही दिमाग में एक अलग ही म्यूजिक स्टाइल घूमने लगता है। वो ऐसे संगीतकार थे जो हमेशा अपनी शर्तों पर काम करते थे, चाहे किसी को अच्छा लगे या ना लगे। इंडस्ट्री में जब उनका लता मंगेशकर से विवाद हुआ, तो उन्होंने भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
शमशाद बेगम ने उस दौर में उनका साथ दिया और फिर नैयर साहब ने गीता दत्त और आशा भोंसले की आवाज को अपना नया म्यूजिक बेस बना लिया। ओ.पी. नैयर का संगीत हमेशा बाकी सबसे अलग रहा। उनकी धुनों में पंजाबी लोकसंगीत की झलक और जो खास रिदम होती थी, उसमें आशा भोंसले की आवाज एकदम परफेक्ट बैठती थी। वैसे गीता दत्त का भी इसमें बड़ा रोल रहा। वही नैयर साहब को गुरुदत्त से मिलवाने वाली थीं।
गुरुदत्त की फिल्म ‘आर-पार’ और उसके बाद ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ के गाने इतने सुपरहिट हुए कि ओ.पी. नैयर सीधे टॉप के म्यूजिक डायरेक्टर्स में गिने जाने लगे। उनकी सफलता का ग्राफ लगातार ऊपर ही जा रहा था। इसी बीच मशहूर फिल्ममेकर बी.आर. चोपड़ा ने दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला को लेकर फिल्म ‘नया दौर’ की शुरुआत की।
इस फिल्म के लिए चोपड़ा साहब ने बतौर म्यूजिक डायरेक्टर ओ.पी. नैयर को साइन किया। कहा जाता है कि ‘नया दौर’ की रिकॉर्डिंग के दौरान ही नैयर और आशा भोंसले के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं, जो बाद में म्यूजिक इंडस्ट्री की सबसे चर्चित जोड़ियों में से एक बन गई।

इस फिल्म से बढ़ी थी दोनों के बीच करीबियां
बता दें कि साल 1957 में फिल्म ‘नया दौर’ रिलीज़ हुई, तब उसके गाने लोगों की जुबान पर छा गए। खासतौर पर आशा भोसले और मोहम्मद रफी की जोड़ी ने धमाल मचा दिया। ‘उड़ें जब-जब जुल्फें तेरी, कंवारियों का दिल मचले’ आज भी वही जोश जगाता है, जो उस दौर में लोगों के दिलों में था।
वहीं शमशाद बेगम के साथ गाया ‘रेशमी सलवार कुर्ता जाली का’ भी हर शादी-ब्याह में बजता था, लेकिन ‘नया दौर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, ये वो मोड़ था, जब आशा भोसले और ओ.पी. नैयर के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं। इस नए रिश्ते की वजह से गीता दत्त और शमशाद बेगम जैसी दिग्गज गायिकाओं को धीरे-धीरे साइड कर दिया गया।
असल में, शमशाद बेगम वही थीं जिन्होंने नैयर को उनके संघर्ष के दिनों में सहारा दिया था। और गीता दत्त ने ही नैयर की मुलाकात गुरुदत्त से करवाई थी, जिससे नैयर का करियर बना। लेकिन कहते हैं ना, सफलता मिलने पर कुछ रिश्ते पीछे छूट जाते हैं। ऐसा ही कुछ यहां भी हुआ।
गीता दत्त ने जब नैयर से सीधे पूछा कि वो उनकी अनदेखी क्यों कर रहे हैं, तो नैयर के पास कोई जवाब नहीं था। मगर किस्मत ने फिर मौका दिया। फिल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ में जब हेलेन पर फिल्माया गया ‘मेरा नाम चिन चिन चू’ गाना गीता दत्त को मिला, तो वो बेहद खुश हो गईं।
ये गाना न सिर्फ गीता की वापसी बन गया बल्कि हेलेन के फिल्मी करियर में भी नई जान डाल दी। आज भी ये गाना हेलेन की पहचान में गिना जाता है। ठीक उसी तरह शम्मी कपूर को ‘झटके-पटकने वाले हीरो’ यानी जंपिंग स्टार की जो छवि मिली, उसमें भी ओ.पी. नैयर का बड़ा हाथ था।
फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ में उनके संगीत और गीतों ने शम्मी कपूर को सुपरस्टार बनाने में खास रोल निभाया। इस फिल्म के बाद शम्मी कपूर का अंदाज और स्टाइल एकदम अलग ही पहचान बन गया।

इस कारण से बेचना पड़ा था ओ. पी. नैयर को अपना घर
गौरतलब है कि ओ. पी. नैयर हारमोनियम, सितार, गिटार, बांसुरी, तबला, ढोलक, संतूर, माउथऑर्गन और सेक्सोफोन जैसे इंस्ट्रूमेंट्स का बेमिसाल इस्तेमाल करते थे। उनका म्यूजिक इतना क्लासिक होता था कि हर एक गीत के शब्द पर उनकी पकड़ साफ दिखाई देती थी, लेकिन शायद ये बहुत कम लोग जानते हैं कि ओ. पी. नैयर सिर्फ संगीतकार ही नहीं, बल्कि होम्योपैथ और ज्योतिष के भी अच्छे जानकार थे।
एक दौर था जब वो इंडस्ट्री के सबसे ज्यादा फीस लेने वाले संगीतकार हुआ करते थे। उनके गानों के बिना फिल्में अधूरी मानी जाती थीं। बड़े-बड़े डायरेक्टर और प्रोड्यूसर उनके पास लाइन लगाए रहते थे, लेकिन जिंदगी कभी एक जैसी नहीं रहती। वक्त ने करवट बदली और म्यूजिक का ट्रेंड बदलने लगा।
नए-नए संगीतकार आ गए, और ओ. पी. नैयर का काम धीरे-धीरे कम होता गया। कई बार ऐसा होता है कि इंसान के पास टैलेंट तो होता है, लेकिन हालात साथ नहीं देते। कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ। करियर में उतार-चढ़ाव आने लगे और आखिरकार उन्हें अपना घर तक बेचना पड़ा।
मगर ओ. पी. नैयर की सबसे बड़ी खूबी यही थी कि उन्होंने कभी अपने किसी फैसले या हालत पर अफसोस नहीं किया। वो जितने टैलेंटेड थे, उतने ही स्वाभिमानी भी थे।