Ashok Kumar: इस अभिनेता ने अपनी पहली ही फिल्म में तोड़ दिए थे खलनायक के पांव, हीरोइन को हार पहनाते सयम कांपने लगे थे हाथ

Ashok Kumar

Ashok Kumar: अशोक कुमार यानी दादामुनि का नाम सुनते ही सिनेमा के उस दौर की याद ताजा हो जाती है जब फिल्मों में कहानी, अभिनय और सादगी का अलग ही जादू होता था। आज हम बात करेंगे अशोक कुमार से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों की, जो शायद कम ही लोग जानते हैं।

अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर 1911 को हुआ था। वो हिंदी सिनेमा के ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने फिल्मों में नायक का किरदार भी निभाया, खलनायक का भी और बाद में चरित्र अभिनेता के तौर पर भी खूब सराहे गए। उनकी फिल्मों में एक अलग ही सच्चाई और गहराई दिखती थी।

1936 में की थी अशोक कुमार ने शुरूआत

सुबह के करीब साढ़े नौ बजे का वक्त था। बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में माहौल हलचल भरा था क्योंकि वहां एक नई फिल्म की शूटिंग शुरू होने वाली थी। बॉम्बे टॉकीज के मालिक और जाने-माने निर्माता हिमांशु राय ने अपनी आने वाली फिल्म ‘जीवन नैया’ के लिए एक नए चेहरे को बतौर हीरो लॉन्च करने का फैसला किया था। इस नए चेहरे का नाम था अशोक कुमार।

जब अशोक कुमार पहली बार शूटिंग के सेट पर पहुंचे, तो हिमांशु राय उन्हें देखकर हैरान रह गए। वजह ये थी कि अशोक कुमार ने अपने बाल बेतरतीब तरीके से खुद ही काट लिए थे। हिमांशु राय ने गंभीर लहजे में पूछा, “ये क्या किया तुमने अशोक?”

अशोक कुमार कुछ कहने ही वाले थे कि हिमांशु राय ने तुरंत हेयर ड्रेसर को बुलाया और कहा, “इनके बाल ठीक करो, अगर जरूरत हो तो विग भी लगा देना।” अशोक कुमार थोड़ा घबराए हुए से दिख रहे थे। उन्होंने हिमांशु राय की तरफ कातर नजरों से देखा और धीरे से बोले, “सर, एक बात कहनी है।”

हिमांशु राय ने कहा, “बोलो।” अशोक कुमार उन्हें सेट के एक कोने में ले गए और धीरे से बोले, “मैं आपकी फिल्म में काम कर लूंगा, पर एक गुजारिश है… मुझसे हीरोइन को गले लगाने वाला सीन मत करवाइएगा। वो मुझसे नहीं हो पाएगा।”

हार पहनाते समय कांपने लगे थे हाथ

बता दें कि जब अशोक कुमार अपनी पहली फिल्म कर रहे थे और उनके सामने थीं इंडस्ट्री की दिग्गज अदाकारा देविका रानी थी। अशोक कुमार को को एक सीन के लिए तैयार किया जा रहा था जिसमें उन्हें देविका रानी के गले में सोने का हार पहनाना था। जब मेकअप आर्टिस्ट उन्हें सेट पर लेकर पहुंची तो जैसे ही अशोक ने देखा कि सामने खुद देविका रानी खड़ी हैं, उनके हाथ-पैर फूलने लगे। उन्हें ये समझ ही नहीं आ रहा था कि इतने बड़े स्टार के सामने कैसे एक्टिंग करेंगे।

निर्देशक ने सीन समझाया कि बस तुमको इतना करना है कि प्रेमिका को एक सोने का हार गिफ्ट करना है और उसके गले में पहनाना है। लेकिन जैसे ही अशोक कुमार ने हार उठाया और देविका रानी के पास पहुंचे, नर्वसनेस इतनी बढ़ गई कि वो सीधा बाथरूम की तरफ भाग गए।

कुछ देर बाद वो दोबारा लौटे। सीन शुरू हुआ, अशोक कुमार कांपते-कांपते हार पहनाने लगे, लेकिन हार देविका रानी के बालों में उलझ गया। फिर से टेक दिया गया। इस बार निर्देशक ने शूटिंग रोकने की बजाय कहा कि जो करना है करो, सीन चलता रहेगा। अशोक ने इतनी हड़बड़ी में हार पहनाने की कोशिश की कि देविका रानी के बाल ही खुल गए। निर्देशक ने माथा पीट लिया लेकिन यही वाकया अशोक कुमार के करियर की शुरुआत का यादगार हिस्सा बन गया।

फिल्मों में एंट्री से पहले मां ने अशोक कुमार से कही थी यह बात

अशोक कुमार जब फिल्मों में आए, तब उनकी जिंदगी में कई उलझनें थीं। सबसे बड़ी चिंता उनकी मां की थी। मां ने साफ-साफ कह दिया था कि फिल्मों में काम करना है तो करो, लेकिन फिल्मी लड़कियों से दूर रहना। उस जमाने में फिल्मों में काम करने वालों को लेकर समाज में अच्छी राय नहीं थी।

यहां तक कि जब उनकी शादी की बात चली, तो लड़की के पिता ने ये रिश्ता सिर्फ इसलिए तोड़ दिया क्योंकि अशोक कुमार फिल्मों में काम करने वाले थे। एक सीन के दौरान बड़ी मजेदार घटना हुई। फिल्म में एक सीन था जिसमें खलनायक हीरोइन को परेशान करता है और अशोक कुमार को उसे धक्का देना होता है।

निर्देशक ने सीन समझाते हुए कहा कि मैं 10 तक गिनूंगा, फिर धक्का देना। लेकिन अशोक कुमार इतने नर्वस थे कि गिनती पूरी होने से पहले ही उन्होंने जोर का धक्का दे दिया। नतीजा ये हुआ कि देविका रानी और खलनायक दोनों जमीन पर गिर पड़े। खलनायक का पैर टूट गया, जबकि देविका रानी हंसते हुए उठ खड़ी हुईं। उस दिन की शूटिंग वहीं रोकनी पड़ी।

इस फिल्म से मिली थी अशोक कुमार को पहचान

अशोक कुमार की जिंदगी में फिल्म ‘अछूत कन्या’ से उन्हें जो शोहरत मिली, उसने उन्हें रातोंरात बड़ा स्टार बना दिया। लेकिन जहां एक तरफ उनकी फिल्में धड़ाधड़ हिट हो रही थीं, वहीं घर में उनकी मां दूसरी ही चिंता में डूबी थीं। मां को लगता था कि बेटा मुंबई में फिल्मों की चमक-धमक और इतनी लड़कियों के बीच रह रहा है, पता नहीं कब क्या कर बैठे।

मां की बस यही चिंता थी कि बेटे की जल्दी से शादी हो जाए ताकि वो किसी गलत रास्ते पर न चला जाए। इसी बीच, 1938 का वो दिन आया जब अशोक कुमार को अचानक एक टेलीग्राम मिला। ये मैसेज उनके पिताजी ने भेजा था, जिसमें लिखा था कि तुरंत खंडवा पहुंचो, बहुत जरूरी काम है। उस वक्त अशोक कुमार फिल्म ‘वचन’ की शूटिंग में बिजी थे, लेकिन जैसे ही मैसेज मिला, उन्होंने शूटिंग छोड़ने का फैसला किया और सीधे खंडवा के लिए निकल पड़े।

जब ट्रेन खंडवा स्टेशन पर रुकी और अशोक कुमार उतरने ही वाले थे, तभी देखा कि उनके पिताजी खुद ट्रेन में चढ़ रहे हैं। ये देख वो हैरान रह गए। पिताजी ने आते ही कहा, “उतरने की जरूरत नहीं है, हमें कलकत्ता जाना है।” अशोक कुमार उस वक्त कुछ समझ ही नहीं पाए और चुपचाप सुनते रहे। पिताजी ने ही अगला इशारा किया और कहा, “लेडीज डिब्बे में जाकर अपनी भाभी से मिल लो।”

अशोक कुमार को बिना बताए कलकत्ता ले जाया गया

अशोक कुमार जब लेडीज डिब्बे में पहुंचे तो देखा कि एक महिला मुस्कुरा रही हैं। तभी उनकी भाभी ने बड़े ही शरारती अंदाज में कहा, “देवर जी, बनो मत, हम तुम्हारी शादी के लिए कलकत्ता जा रहे हैं।” अशोक कुमार इस बात पर खूब हंसे और चुपचाप अपने डिब्बे में जाकर बैठ गए। शायद उन्हें अंदाजा नहीं था कि वाकई उनकी शादी होने जा रही है।

जब अशोक कुमार कलकत्ता पहुंचे, तो देखा कि उनकी मां और बाकी सारे रिश्तेदार पहले से वहां मौजूद हैं। माहौल कुछ ज्यादा ही फेस्टिव लग रहा था। फिर क्या, नाटकीय अंदाज में उनकी शादी करवा दी गई। ये किस्सा है 14 अप्रैल 1938 का, जब अशोक कुमार की शादी शोभा जी से हुई। मजेदार बात ये थी कि उनके बहनोई शशधर मुखर्जी भी शादी में नहीं पहुंच पाए।

शादी के बाद अशोक कुमार वापस मुंबई लौटे। उस वक्त बॉम्बे कहा जाता था। फिर तो जैसे किस्मत ही खुल गई। उनकी पॉपुलैरिटी और इनकम दोनों तेजी से बढ़ने लगी। उनकी मां को भी ये तसल्ली हो गई कि बेटा फिल्मों में काम करने के बावजूद बिगड़ेगा नहीं। अशोक कुमार की ये शादी और उसके बाद की कामयाबी, दोनों ही उनकी जिंदगी का बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुए।

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